क्या डिप्रेशन और कमर दर्द में कोई संबंध है?/is depression and chronic back pain related?

पुराने पीठ दर्द में सामान्य उदासी या कुछ समय के लिए लो फील करना सामान्य बात है। पर यह उदासी सामान्य स्तर से आगे जाकर डिप्रेशन या अवसाद को भी जन्म दे सकती है। पुराने पीठ दर्द के साथ अवसाद या डिप्रेशन का जुड़ाव सामान्यतः सबसे ज्यादा होता है। जब अवसाद पुराने पीठ दर्द के साथ जुड़ा होता है तो इसे मेजर डिप्रैशन या क्लिनिकल डिप्रैशन कहते हैं।

हालांकि चिकित्सकों के पास पुराने पीठ पर और साथ ही साथ डिप्रेशन जैसे मरीज सामान्यता बहुतायत में आते हैं परंतु फिर भी पुराने पीठ दर्द और अवसाद की घनिष्ठता के संबंध में बहुत ही कम शोध पत्र मिलते हैं।

शोध के मुताबिक जनसामान्य की अपेक्षा मेजर डिप्रेशन पुराने पीठ दर्द के रोगियों में 4 गुना अधिक होता है। पर पुराने पीठ दर्द के मरीज जो दर्द के लिए चिकित्सक को दिखाते हैं उनमें 60%परसेंट मरीजों को अपने पीठ दर्द के किसी न किसी स्टेज में डिप्रेशन के लक्षण अवश्य दिखाई देते हैं।

मेजर डिप्रेशन के क्या लक्षण है?

  • सामान्य गतिविधियों में रुचि ना लेना यह आनंद न आना।
  • बहुत कम या बहुत अधिक नींद आना
  • बेचैनी,सुस्तपन या थकान महसूस करना
  • ऐसी मनोदशा जिसमें उदासी ,निराशापन, चिड़चिड़ापन हो।
  • भूख कम लगना या अत्यधिक वजन घटना या ज्यादा भूख और ज्यादा वजन बढ़ना
  • अपराध बोध की भावना होना या खुद को बेकार समझना
  • सेक्स ड्राइव में कमी होना
  • आत्महत्या या मृत होने की इच्छा का विचार आना

पुराने पीठ दर्द वाले लोगों को डिप्रेशन(अवसाद) कैसे विकसित होता है?

पुराने पीठ दर्द वाला व्यक्ति कुछ निम्न लक्षण विकसित करता है जिसे देखकर डिप्रेशन कैसे होता है, का अनुमान लगाया जा सकता है।

1. दिन के दौरान पीठ दर्द के मरीजों को चलने में कठिनाई होती है, इसलिए वह धीरे धीरे चलते हैं और अपना अधिकांश समय घर पर दूसरों से दूर बिताते हैं। यह उन्हें सामाजिक अलगाव की ओर और उल्लास से दूर ले जाता है।

2. काम न कर पाने की वजह से घर की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ सकती है जिसकी वजह से मानसिक अवसाद उत्पन्न होता है।

3. दर्द के कारण अक्सर रात में सोना मुश्किल हो जाता है जिससे दिन में आलस्य,थकान और चिड़चिड़ापन हो जाता है।

4. दर्द अगर विचलित करने वाला होता है तो याददाश्त और एकाग्रता में कमी आती है।

5. लगातार दर्द की दवा या सूजन की दवा लेते रहने से मानसिक सुस्ती बनी रहती है तथा पेट की समस्या भी पैदा हो जाती है । यह मरीज को और भी तनाव देने वाला होता है।

6. यौन क्रिया प्रभावित होती है जिससे रोगी के रिश्ते में तनाव बना रहता है।

तो इस बात को समझा जा सकता है की पुराने पीठ दर्द या गर्दन दर्द के मरीज को ये लक्षण निराशा या अवसाद को जन्म दे सकते हैं।

यहां पर पुराने पीठ दर्द के रोगी में मैं नियंत्रण के मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि पुराने पीठ दर्द से काम ,मनोरंजक गतिविधियों,परिवार के सदस्यों व दोस्तों के साथ बातचीत जैसी गतिविधियों मैं शामिल होने की क्षमता कम हो सकती है। यह पुराने पीठ दर्द के व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से हतोत्साहित करती है। इसे “शारीरिक और मानसिक विघटन “कहा गया है। और जैसे-जैसे यह प्रक्रिया जारी रहती है, पुराने पीठ दर्द वाला व्यक्ति अपने जीवन पर नियंत्रण की अधिक से अधिक कमी महसूस करता है या अंततः वह व्यक्ति अपने जीवन को पूरी तरह दर्द से नियंत्रित किया हुआ महसूस कर सकता है। इससे मेजर डिप्रेशन की अवस्था उत्पन्न होती है। इस डिप्रेशन की अवस्था में आमतौर पर व्यक्ति स्थिति को बदलने में असमर्थ होता है, भले ही इस स्थिति के संभावित समाधान मौजूद हों।

पुरानी पीठ दर्द के मरीजों में डिप्रेशन का पता आसानी से क्यों नहीं चल पाता है?

ऐसा दो कारणों की वजह से होता है।

1. पुरानी पीठ दर्द के रोगी अक्सर यह महसूस नहीं करते हैं कि वह अवसाद में है। पुरानी पीठ दर्द के मरीज डिप्रेशन के लक्षणों को अक्सर कम करके बताते हैं, वे यह मानते हैं “बस इस दर्द से छुटकारा पा जाऊंगा और मैं उदास महसूस नहीं करूंगा”।

2. चिकित्सक भी अक्सर डिप्रेशन के लक्षणों को ढूंढने की कोशिश नहीं करते हैं और सिर्फ पीठ दर्द की शिकायतों पर ध्यान रखते हैं साथ ही साथ मरीज द्वारा भी डिप्रेशन के लक्षणों को छुपाया जाता है या कम करके बताया जाता है।

पुराने पीठ दर्द के मरीज खुद कैसे पता लगाएं कि वह डिप्रेशन में हो सकते हैं?

पुराने पीठ दर्द के रोगी नीचे दिए गए प्रश्नों को अपने आप से पूछें और उस अनुसार अपने आप को एक स्कोर दें। अगर यह लक्षण 2 हफ्ते या उससे ज्यादा समय से हैं तभी उसे स्कोर दें,अन्यथा नहीं।

स्कोर इस तरह दिया जाएगा।

0=बिल्कुल नहीं

1=थोड़ा बहुत

2=मध्यम या औसत दर्जे का

3=ढेर सारा

प्रश्न

  • क्या आपने दूसरे लोगों में या अपनी सामान्य गतिविधियों में रुचि खो दी है?
  • क्या आप बेकार महसूस करते हैं या खुद को असफल मानते हैं?
  • क्या आप भविष्य को लेकर निराश महसूस करते हैं?
  • क्या आप दूसरों के सामने हीन भावना महसूस करते हैं?
  • क्या आप लगातार उदास और दुखी महसूस करते हैं?
  • क्या आप दोषी महसूस करते हैं या हर चीज के लिए खुद को दोषी मानते हैं?
  • क्या आप निराश और चिड़चिड़ा महसूस करते हैं?
  • क्या आपको निर्णय लेने में कठिनाई होती है?
  • क्या आप अनमोटिवेटेड महसूस करते हैं और काम करने में कठिनाई महसूस करते हैं?
  • क्या आपको महसूस होता है की आप बूढ़े, बदसूरत और भद्दा दिखाई देते हैं?
  • क्या आपको भूख कम लगती है और आपका वजन भी घटा है जबकि आपने डाइटिंग नहीं की है?
  • क्या आपको सोने में परेशानी होती है और आप रात में अनचाहे समय पर जाग जाते हैं?
  • ज्यादातर समय आप थका हुआ महसूस करते हैं?
  • क्या आपको बार बार रोना आता है या रोने का मन करता है लेकिन रो नहीं पाते?
  • क्या आपने सेक्स में रुचि खो दी है?
  • क्या आप आगामी सर्जरी के बाद भी अक्सर अपने सामान स्वास्थ्य की चिंता करते हैं?
  • क्या आपके मन में खुद को मारने के विचार आते हैं या आप बार-बार यह सोचते हैं की मर जाना ही बेहतर है?

ऊपर दिए गए 17 लक्षणों को स्कोर दीजिए, और उन स्कोर को जोड़कर निम्न अनुसार उसकी व्याख्या कीजिए।

0-4 कोई डिप्रेशन नहीं

4-11 बॉर्डरलाइन डिप्रेशन

12-21 हल्का (mild) डिप्रेशन

22-31 मध्यम (moderate)डिप्रेशन

32-51 गंभीर (severe) डिप्रेशन

अगर आप का स्कोर 32-51 यानी गंभीर कैटेगरी में है या आपको अपने आप को मार डालने के विचार मन में आते हैं तो आपको मनोचिकित्सक से संपर्क करने की आवश्यकता है।

डिप्रेशन की अवस्था को पूरी सक्रियता से संभालने के लिए पुरानी पीठ दर्द के रोगी क्या कर सकते हैं?

1. अपने डिप्रेशन के बारे में बात करें

पुराने पीठ दर्द के साथ अवसाद या भावनात्मक बदलाव स्वभाविक है। बहुत से पुराने पीठ दर्द के रोगी अपने चिकित्सक से अवसाद के बारे में बात नहीं करते हैं उनका यह मानना है कि वे जो चिंता तनाव या अवसाद का अनुभव कर रहे हैं वह दर्द की समस्या का समाधान हो जाने के बाद दूर हो जाएगा।

एक चिकित्सक से अवसाद के बारे में बात करने से चिकित्सक को बेहतर जानकारी मिलेगी और वह उचित देखभाल करने में सक्षम होंगे। अवसाद या डिप्रेशन लक्षणों की आवृत्ति और तीव्रता को प्रभावित करता है। एक साथ पीठ दर्द और अवसाद का इलाज कराने से मरीज को ठीक होने का बेहतर मौका मिलेगा।

2. ऐसे तनाव ट्रिगर की पहचान करें जो आपके पीठ दर्द को बढ़ाते हैं

तनाव ट्रिगर या भावनात्मक ट्रिगर की पहचान करना जो दर्द को बढ़ाते हैं, दर्द को नियंत्रित करने में मदद के लिए यह पहला कदम है -उस विशिष्ट तनाव या भावना से बचके या कम करके दर्द को नियंत्रित किया जा सकता है।

पुरानी पीठ दर्द के मरीज इस बात की निगरानी स्वयं कर सकते हैं कि कौन सा तनाव और चिन्ता उनकी पीठ के दर्द को बढ़ा देता है। इसके लिए वह एक डायरी अपने पास रख सकते हैं और पता करें कि आपका पीठ दर्द कब बदलता है और किस प्रकार का तनाव दर्द को ट्रिगर करता है। यह डायरी का अभ्यास उन तत्वों की पहचान करने में सहायक है जो दर्द को बढ़ाते हैं।

3. शुरुआती दौर में ही डिप्रेशन का निदान करें।

कई चिकित्सकों को पीठ दर्द के दौरान होने वाले डिप्रेशन का आकलन करने के लिए आवश्यक रूप से प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। एक चिकित्सक से अवसाद के लक्षणों के बारे में बात करना चिकित्सक को पीठ दर्द और अवसाद दोनों स्थितियों के साथ साथ उपचार पर विचार करने की आवश्यकता के बारे में सचेत कर सकता है।

एक्यूट पीठ दर्द का रोगी शुरुआती दौर के पीठ दर्द से पूरी तरह ठीक हो जाता है परंतु अगर रोगी के साथ अवसाद या डिप्रेशन के लक्षण जुड़े हुए हैं तो उसके पीठ दर्द के क्रॉनिक यानी पुरानी बन जाने की संभावना अधिक होती है।

4. दर्द और डिप्रेशन दोनों के लिए बहु आयामी चिकित्सा की तलाश करें

दोनों का उपचार एक बहू विषयक पाठ्यक्रम है जिसमें चिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर दोनों की निगरानी होने पर उत्कृष्ट परिणाम मिलते हैं। एक टीम दृष्टिकोण के साथ दर्द और अवसाद दोनों की निगरानी की जाती है और दोनों चिकित्सक इस बारे में आपस में बात कर सकते हैं कि प्रत्येक क्षेत्र एक दूसरे को कैसे प्रभावित करता है। चिकित्सकों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि मरीज के शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन उसके मानसिक परिवर्तन से भी संबंधित हो सकते हैं।

अंतिम वाक्य

इन सब के अतिरिक्त यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि दर्द के सामान्य उपचार जैसे दर्द की दवा, गतिविधि प्रतिबंधित करना, बिस्तर पर आराम करना वास्तव में अवसाद को बदतर बना सकते हैं और यह बिगड़ती अवसाद की अवस्था आपकी शारीरिक भंगिमा को भी प्रभावित करती है। अगर आपके रीढ़ रोग विशेषज्ञ आपको मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि समस्या आपके दिमाग में है। इसका मतलब है कि वह एक सकारात्मक कदम उठा रहे हैं जिससे आप के दर्द का शारीरिक और मानसिक स्तर पर संपूर्ण इलाज संभव हो सके।

Published by Vivekswarnkar

Dr. Vivek Swarnkar, an Orthopedic Surgeon with more than 15 years of experience.

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