Featured

रात में दिल की घबराहट क्यों होती है?/Why do I get heart palpitations at night?

कई बार यह देखा गया है कि रात में लेटते समय हमें घबराहट होने लगती है और सीने में धड़कन बढ़ी हुई महसूस होती है।ये आपको परेशान कर सकता है,पर ये आमतौर पर सामान्य होते हैं और आमतौर पर किसी और गंभीर बीमारी का संकेत नहीं होते हैं।

बहुत से लोगों ये दिन में भी होता है,लेकिन उनका ध्यान उधर नही जाता क्योंकि वे व्यस्त होते हैं। आप इसे महसूस कर सकते हैं जब आप शांत बैठे या लेटे हों।

जब आप बाएं तरफ करवट लेकर लेटते है तो बढ़ी हुई धड़कन और प्रखर रूप से सुनाई दे सकती है। यद्धपि ज्यादातर ये हानिकारक नही होती है,पर कुछ परिस्थितियों में यह हानिकारक साबित हो सकती है और इसका हमें विशेष ध्यान रखना होगा। इस ब्लॉग में हम बात करेंगे कि दिल की घबराहट होने के क्या कारण है और कब हमें सावधान हो जाना चाहिए और तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

रात में दिल के घबराहट के क्या लक्षण होते हैं?

दिल की घबराहट में आप निम्न लक्षणों को महसूस कर सकते हैं।

फड़फड़ाना (fluttering) कुछ लोग इसे सीने में फड़फड़ाहट की तरह महसूस कर सकते हैं। या ऐसा लग सकता है कि जैसे हृदय पलटी मार रहा हो।

अनियमित हृदय गति आपको ऐसा भी लग सकता है कि आपकी हृदय गति कभी तेज हो रही है कभी धीमी हो रही है या फिर बीच-बीच में एक आध बार हृदय की बीट ( धड़कना) बंद होकर फिर से धड़क रहा है इसे missing heart beat कहते हैं।

पूरी ताकत से धड़कन महसूस होना (pounding heart) आपको यह भी महसूस हो सकता है कि आपका हृदय पूरी ताकत से धड़क रहा है जिससे आपको पसलियों पर दबाव महसूस हो रहा है या फिर आपके कानों तक उसकी आवाज जा रही है।

रात में दिल की घबराहट के क्या कारण हो सकते हैं?

१. सामान्यतः तौर पर

२. करवट लेकर लेटने पर

३. चिंता ,तनाव ,डिप्रेशन या पैनिक अटैक होने पर

४. खून की कमी, कम रक्तचाप, डायबिटीज, थायराइड के मरीजों में।

५. उत्तेजक जैसे कैफीन या निकोटीन या साइडोफेड्रिन जैसी दवाएं लेने पर।

६. अत्यधिक वजन मोटापा या बुखार होने पर।

७. पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन या इलेक्ट्रोलाइट इमबैलेंस होने पर।

८. गर्भावस्था या मीनोपॉज के दौरान हार्मोन स्तर बदलने पर।

९. हृदय की समस्या जैसे हार्ट फेलियर , येरिथ मिया, मायो कारडाइटिस, हार्ट अटैक आदि।

दिल की घबराहट होने पर हमें कब डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए?

कुछ समय के लिए और कभी-कभी होने वाली दिल की घबराहट आमतौर पर सामान्य ही होती है। ऐसी घबराहट आमतौर पर खानपान में परिवर्तन और दिनचर्या में परिवर्तन करके नियंत्रित की जा सकती है।

आपको डॉक्टर से अवश्य संपर्क करना चाहिए जब यह दिल की घबराहट लगातार और कई बार हो रही हो या फिर इसके साथ साथ आपको सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना बेहोश हो जाना, सीने में दर्द होना, सर दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हों।

ऊपर दिए गए रिस्क फैक्टर जैसे थायराइड, डायबिटीज आदि भी अगर आप में है तो भी दिल की घबराहट के लक्षण लगातार आने पर डॉक्टर से अवश्य संपर्क करना चाहिए।

दिल की घबराहट को नियंत्रित करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

जैसा कि ऊपर बताया गया है कभी-कभी होने वाली दिल की घबराहट आमतौर पर कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है। इसको नियंत्रित करने के लिए आप अपने आप यह उपाय कर सकते हैं।

गहरी गहरी सांस लेना लंबी और गहरी सांस लेना शुरू करना चाहिए या मेडिटेशन का भी सहारा ले सकते हैं मेडिटेशन से तनाव और चिंता नियंत्रित करने में काफी मदद मिलती है।

पर्याप्त पानी पिए अगर आपने कम पानी पिया है या डिहाइड्रेटेड है तो आपके हृदय को ज्यादा धड़कना पड़ सकता है खून की चाल को बढ़ाने के लिए, इसलिए डिहाइड्रेशन को नियंत्रित करना आवश्यक है।

बिस्तर पर स्थिति बदल लें या गहरी सांस लेते हुए थोड़ा घूम लें अगर करवट लेकर लेटने में आपको घबराहट महसूस हो रही है तो सीधा लेट जाएं या दूसरी तरफ करवट ले लें या फिर खुली हवा में गहरी सांस लेते हुए थोड़ी देर घूम कर आएं।

रात में होने वाली दिल की घबराहट की रोकथाम के लिए आप क्या उपाय कर सकते हैं?

ऐसा हो सकता है कि आप रात में होने वाले दिल के घबराहट को रोक ना पाए पर कुछ उपाय करके आप उस के जोखिम को कम कर सकते हैं।

  • बिस्तर पर जाने से पहले शराब, धूम्रपान या कैफीन का सेवन ना करें।
  • बिस्तर में जाने से पहले बहुत ज्यादा खाना खासकर जिसमें ज्यादा कार्बोहाइड्रेट और शुगर हो नहीं खाना चाहिए।
  • अगर आपको चिंता या तनाव डिप्रेशन या पैनिक अटैक आते हैं, तो उसका इलाज अवश्य कराएं ,साथ ही साथ मेडिटेशन और दूसरी रिलैक्सेशन तकनीको को भी आजमाएं।
  • अपना वजन नियंत्रित रखें।
  • खाना खाने के कम से कम 2 घंटे के बाद सोने जाए और अगर करवट लेकर सोने में घबराहट महसूस हो तो बिस्तर पर अपनी स्थिति बदल लें।

अंतिम वाक्य:: दिल की घबराहट आमतौर पर नुकसान नहीं पहुंचाती ,यह सामान्य होती है, पर अगर दिल की घबराहट बार-बार और लगातार हो रही हो और साथ में आपको ऊपर दिए गए रिस्क फैक्टर भी हो या फिर आपको घबराहट के साथ-साथ सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना, बेहोश हो जाना ,सीने में दर्द, सर दर्द जैसे लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना चाहिए

कृपया ब्लॉग को लाइक और सब्सक्राइब करें धन्यवाद।

Featured

पीठ में होने वाली गांठ से छुटकारा कैसे पाएं/how to get rid of knot in your back

अगर आप बहुत भारी वजन उठाने का काम करते हैं या कंप्यूटर पर रोज 8 घंटे से ज्यादा बैठकर काम करते हैं या व्यायाम बिल्कुल नहीं करते और फास्ट फूड ज्यादा खाते हैं या फिर आपकी दिनचर्या में मानसिक तनाव बहुत होता है तो आपको मांसपेशियों की गांठ बनने की संभावना ज्यादा है यह गांठ ज्यादातर गर्दन और कंधे के पीछे ,कमर और कूल्हे पर सबसे ज्यादा बनती है और इनमें छूने या दबाने पर दर्द होता है।

यह गांठे जिन्हें ट्रिगर पॉइंट्स के रूप में भी जाना जाता है तब होती है जब आपके मांसपेशियों के फाइबर आराम नहीं कर पाते। ज्यादातर यह गांठे कंधे के ट्रेपीजियस मांसपेशी में बनती हैं।

क्या लक्षण है?

मांसपेशियों की गांठ आप की मांसपेशी और जोड़ों में दर्द पैदा कर सकती है। जब आप एक मांसपेशी गांठ को छूते हैं, तो इसमें सूजन, तनाव और उबड़ खाबड़ सा महसूस हो सकता है। जब आप आराम करने की कोशिश कर रहे होते हैं, तो भी यह तंग ,सिकुड़ा हुआ और खिंचाव सा महसूस हो सकता है। यह अक्सर स्पर्श के प्रति संवेदनशील होते हैं और इसमें सूजन भी हो सकती है। आप तनाव चिंता और डिप्रेशन का अनुभव भी कर सकते हैं और आपको सोने में कठिनाई हो सकती है।

छुटकारा पाने के तरीके

निम्न तरीकों को अपनाकर आप पीठ में होने वाली गांठ से छुटकारा पा सकते हैं।

1. बताए गए तरीके से मसाज करें

छूकर गांठ को महसूस करे और अपनी उंगली या अंगूठे का प्रयोग करके दर्द सहने तक कुछ सेकंड तक दबाकर रखें ,इसके बाद उंगली या अंगूठे को गोल गोल(circular motion) घुमाकर मसाज करें।मालिश करते समय गांठ के फाइबर को दबाकर ढीला करने पर फोकस करें।

2. मांसपेशी का स्ट्रेचिंग व्यायाम करें

जिस मांसपेशी में गांठ है उस मांसपेशी का नियमित रूप से छोटी छोटी अवधि में स्ट्रैचिंग करें। कम से कम 30 सेकंड तक प्रतिदिन तीन चार बार करने से उस मांसपेशी के खिंचाव में आराम मिल सकता है।

3. नियमित व्यायाम करें।

ज्यादातर ये गांठे या ट्रिगर पॉइंट्स तब होते हैं जब हम सेडेंटरी लाइफ़स्टाइल जीते हैं या ज्यादा देर तक एक जगह पर बैठकर काम करते हैं जबकि हमारे शरीर को नियमित मूवमेंट यानी चलन में रहने की जरूरत होती है। इसलिए हमें अपनी दिनचर्या बदलने की जरूरत है और रोज कम से कम 30 मिनट तक एरोबिक व्यायाम करना चाहिए, और वास्तव में रोजाना 30 मिनट का एरोबिक व्यायाम आपके इन लक्षणों को दूर करने या दोबारा ना होने देने में अत्यधिक प्रभावी साबित होगा।

4.हीट थेरेपी( गरम सिकाई)

मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाने के लिए गर्म पानी की बोतल या बैग ,हीट पैच, सोना बाथ, या इप्सम नमक का बाथ आप आजमा सकते हैं। यह मांसपेशी में रक्त का संचार बनाता है और मांसपेशी में होने वाले खिंचाव या तनाव को कम करता है जिससे नॉट अप्वॉइंट के दर्द और खिंचाव को कम करने में मदद मिलती है।

5. अपनी मुद्रा में परिवर्तन करें।

अगर आप की गांठ का कारण एक ही मुद्रा में ज्यादा देर तक बैठकर काम करना है तो हर 25 से 30 मिनट के बाद अपने बैठने की मुद्रा को परिवर्तित कर ले या फिर बीच में उठकर टहलने या 1 से 2 मिनट का स्ट्रेचिंग व्यायाम कर ले। इससे आपकी मांसपेशी पर खिंचाव भी कम होगा और नई गांठों को बनने से रोकने में भी काफी मदद मिलेगी।

6. अपने खानपान में परिवर्तन करें।

हमें डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए

स्वास्थ्यवर्धक आहार ले जिसमें कैल्शियम पोटेशियम और मैग्नीशियम बहुतायत में हों। और प्रचुर मात्रा में पानी का सेवन अवश्य करें अमूमन हमें दो से ढाई लीटर पानी प्रतिदिन अवश्य पीना चाहिए। प्रोसैस्ड फूड और फास्ट फूड की जगह ताजे खाने को प्राथमिकता दें।

हमें डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए

मांसपेशियों की गांठे ना हो इसके लिए उपरोक्त कदम उठाए जा सकते हैं। इसके बावजूद अगर गांठे हो जाएं या ठीक ना हो रही हो (कम से कम 3 हफ्ते तक उपरोक्त उपाय करने के बाद)तो हमें चिकित्सक से अवश्य संपर्क करना चाहिए। चिकित्सक इस बात की जांच करेंगे कि कहीं यह गांठ किसी और वजह से तो नहीं हो रही है। और उसका उचित इलाज सुझायेगे।

आपका ब्लॉक कैसा लगा कृपया लाइक और कमेंट करें ,धन्यवाद।

और भी जानकारी के लिए आप मेरा यूट्यूब चैनल फॉलो कर सकते हैं। डॉ विवेक स्वर्णकार। Dr vivek swarnkar.

Featured

क्या डिप्रेशन और कमर दर्द में कोई संबंध है?/is depression and chronic back pain related?

पुराने पीठ दर्द में सामान्य उदासी या कुछ समय के लिए लो फील करना सामान्य बात है। पर यह उदासी सामान्य स्तर से आगे जाकर डिप्रेशन या अवसाद को भी जन्म दे सकती है। पुराने पीठ दर्द के साथ अवसाद या डिप्रेशन का जुड़ाव सामान्यतः सबसे ज्यादा होता है। जब अवसाद पुराने पीठ दर्द के साथ जुड़ा होता है तो इसे मेजर डिप्रैशन या क्लिनिकल डिप्रैशन कहते हैं।

हालांकि चिकित्सकों के पास पुराने पीठ पर और साथ ही साथ डिप्रेशन जैसे मरीज सामान्यता बहुतायत में आते हैं परंतु फिर भी पुराने पीठ दर्द और अवसाद की घनिष्ठता के संबंध में बहुत ही कम शोध पत्र मिलते हैं।

शोध के मुताबिक जनसामान्य की अपेक्षा मेजर डिप्रेशन पुराने पीठ दर्द के रोगियों में 4 गुना अधिक होता है। पर पुराने पीठ दर्द के मरीज जो दर्द के लिए चिकित्सक को दिखाते हैं उनमें 60%परसेंट मरीजों को अपने पीठ दर्द के किसी न किसी स्टेज में डिप्रेशन के लक्षण अवश्य दिखाई देते हैं।

मेजर डिप्रेशन के क्या लक्षण है?

  • सामान्य गतिविधियों में रुचि ना लेना यह आनंद न आना।
  • बहुत कम या बहुत अधिक नींद आना
  • बेचैनी,सुस्तपन या थकान महसूस करना
  • ऐसी मनोदशा जिसमें उदासी ,निराशापन, चिड़चिड़ापन हो।
  • भूख कम लगना या अत्यधिक वजन घटना या ज्यादा भूख और ज्यादा वजन बढ़ना
  • अपराध बोध की भावना होना या खुद को बेकार समझना
  • सेक्स ड्राइव में कमी होना
  • आत्महत्या या मृत होने की इच्छा का विचार आना

पुराने पीठ दर्द वाले लोगों को डिप्रेशन(अवसाद) कैसे विकसित होता है?

पुराने पीठ दर्द वाला व्यक्ति कुछ निम्न लक्षण विकसित करता है जिसे देखकर डिप्रेशन कैसे होता है, का अनुमान लगाया जा सकता है।

1. दिन के दौरान पीठ दर्द के मरीजों को चलने में कठिनाई होती है, इसलिए वह धीरे धीरे चलते हैं और अपना अधिकांश समय घर पर दूसरों से दूर बिताते हैं। यह उन्हें सामाजिक अलगाव की ओर और उल्लास से दूर ले जाता है।

2. काम न कर पाने की वजह से घर की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ सकती है जिसकी वजह से मानसिक अवसाद उत्पन्न होता है।

3. दर्द के कारण अक्सर रात में सोना मुश्किल हो जाता है जिससे दिन में आलस्य,थकान और चिड़चिड़ापन हो जाता है।

4. दर्द अगर विचलित करने वाला होता है तो याददाश्त और एकाग्रता में कमी आती है।

5. लगातार दर्द की दवा या सूजन की दवा लेते रहने से मानसिक सुस्ती बनी रहती है तथा पेट की समस्या भी पैदा हो जाती है । यह मरीज को और भी तनाव देने वाला होता है।

6. यौन क्रिया प्रभावित होती है जिससे रोगी के रिश्ते में तनाव बना रहता है।

तो इस बात को समझा जा सकता है की पुराने पीठ दर्द या गर्दन दर्द के मरीज को ये लक्षण निराशा या अवसाद को जन्म दे सकते हैं।

यहां पर पुराने पीठ दर्द के रोगी में मैं नियंत्रण के मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि पुराने पीठ दर्द से काम ,मनोरंजक गतिविधियों,परिवार के सदस्यों व दोस्तों के साथ बातचीत जैसी गतिविधियों मैं शामिल होने की क्षमता कम हो सकती है। यह पुराने पीठ दर्द के व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से हतोत्साहित करती है। इसे “शारीरिक और मानसिक विघटन “कहा गया है। और जैसे-जैसे यह प्रक्रिया जारी रहती है, पुराने पीठ दर्द वाला व्यक्ति अपने जीवन पर नियंत्रण की अधिक से अधिक कमी महसूस करता है या अंततः वह व्यक्ति अपने जीवन को पूरी तरह दर्द से नियंत्रित किया हुआ महसूस कर सकता है। इससे मेजर डिप्रेशन की अवस्था उत्पन्न होती है। इस डिप्रेशन की अवस्था में आमतौर पर व्यक्ति स्थिति को बदलने में असमर्थ होता है, भले ही इस स्थिति के संभावित समाधान मौजूद हों।

पुरानी पीठ दर्द के मरीजों में डिप्रेशन का पता आसानी से क्यों नहीं चल पाता है?

ऐसा दो कारणों की वजह से होता है।

1. पुरानी पीठ दर्द के रोगी अक्सर यह महसूस नहीं करते हैं कि वह अवसाद में है। पुरानी पीठ दर्द के मरीज डिप्रेशन के लक्षणों को अक्सर कम करके बताते हैं, वे यह मानते हैं “बस इस दर्द से छुटकारा पा जाऊंगा और मैं उदास महसूस नहीं करूंगा”।

2. चिकित्सक भी अक्सर डिप्रेशन के लक्षणों को ढूंढने की कोशिश नहीं करते हैं और सिर्फ पीठ दर्द की शिकायतों पर ध्यान रखते हैं साथ ही साथ मरीज द्वारा भी डिप्रेशन के लक्षणों को छुपाया जाता है या कम करके बताया जाता है।

पुराने पीठ दर्द के मरीज खुद कैसे पता लगाएं कि वह डिप्रेशन में हो सकते हैं?

पुराने पीठ दर्द के रोगी नीचे दिए गए प्रश्नों को अपने आप से पूछें और उस अनुसार अपने आप को एक स्कोर दें। अगर यह लक्षण 2 हफ्ते या उससे ज्यादा समय से हैं तभी उसे स्कोर दें,अन्यथा नहीं।

स्कोर इस तरह दिया जाएगा।

0=बिल्कुल नहीं

1=थोड़ा बहुत

2=मध्यम या औसत दर्जे का

3=ढेर सारा

प्रश्न

  • क्या आपने दूसरे लोगों में या अपनी सामान्य गतिविधियों में रुचि खो दी है?
  • क्या आप बेकार महसूस करते हैं या खुद को असफल मानते हैं?
  • क्या आप भविष्य को लेकर निराश महसूस करते हैं?
  • क्या आप दूसरों के सामने हीन भावना महसूस करते हैं?
  • क्या आप लगातार उदास और दुखी महसूस करते हैं?
  • क्या आप दोषी महसूस करते हैं या हर चीज के लिए खुद को दोषी मानते हैं?
  • क्या आप निराश और चिड़चिड़ा महसूस करते हैं?
  • क्या आपको निर्णय लेने में कठिनाई होती है?
  • क्या आप अनमोटिवेटेड महसूस करते हैं और काम करने में कठिनाई महसूस करते हैं?
  • क्या आपको महसूस होता है की आप बूढ़े, बदसूरत और भद्दा दिखाई देते हैं?
  • क्या आपको भूख कम लगती है और आपका वजन भी घटा है जबकि आपने डाइटिंग नहीं की है?
  • क्या आपको सोने में परेशानी होती है और आप रात में अनचाहे समय पर जाग जाते हैं?
  • ज्यादातर समय आप थका हुआ महसूस करते हैं?
  • क्या आपको बार बार रोना आता है या रोने का मन करता है लेकिन रो नहीं पाते?
  • क्या आपने सेक्स में रुचि खो दी है?
  • क्या आप आगामी सर्जरी के बाद भी अक्सर अपने सामान स्वास्थ्य की चिंता करते हैं?
  • क्या आपके मन में खुद को मारने के विचार आते हैं या आप बार-बार यह सोचते हैं की मर जाना ही बेहतर है?

ऊपर दिए गए 17 लक्षणों को स्कोर दीजिए, और उन स्कोर को जोड़कर निम्न अनुसार उसकी व्याख्या कीजिए।

0-4 कोई डिप्रेशन नहीं

4-11 बॉर्डरलाइन डिप्रेशन

12-21 हल्का (mild) डिप्रेशन

22-31 मध्यम (moderate)डिप्रेशन

32-51 गंभीर (severe) डिप्रेशन

अगर आप का स्कोर 32-51 यानी गंभीर कैटेगरी में है या आपको अपने आप को मार डालने के विचार मन में आते हैं तो आपको मनोचिकित्सक से संपर्क करने की आवश्यकता है।

डिप्रेशन की अवस्था को पूरी सक्रियता से संभालने के लिए पुरानी पीठ दर्द के रोगी क्या कर सकते हैं?

1. अपने डिप्रेशन के बारे में बात करें

पुराने पीठ दर्द के साथ अवसाद या भावनात्मक बदलाव स्वभाविक है। बहुत से पुराने पीठ दर्द के रोगी अपने चिकित्सक से अवसाद के बारे में बात नहीं करते हैं उनका यह मानना है कि वे जो चिंता तनाव या अवसाद का अनुभव कर रहे हैं वह दर्द की समस्या का समाधान हो जाने के बाद दूर हो जाएगा।

एक चिकित्सक से अवसाद के बारे में बात करने से चिकित्सक को बेहतर जानकारी मिलेगी और वह उचित देखभाल करने में सक्षम होंगे। अवसाद या डिप्रेशन लक्षणों की आवृत्ति और तीव्रता को प्रभावित करता है। एक साथ पीठ दर्द और अवसाद का इलाज कराने से मरीज को ठीक होने का बेहतर मौका मिलेगा।

2. ऐसे तनाव ट्रिगर की पहचान करें जो आपके पीठ दर्द को बढ़ाते हैं

तनाव ट्रिगर या भावनात्मक ट्रिगर की पहचान करना जो दर्द को बढ़ाते हैं, दर्द को नियंत्रित करने में मदद के लिए यह पहला कदम है -उस विशिष्ट तनाव या भावना से बचके या कम करके दर्द को नियंत्रित किया जा सकता है।

पुरानी पीठ दर्द के मरीज इस बात की निगरानी स्वयं कर सकते हैं कि कौन सा तनाव और चिन्ता उनकी पीठ के दर्द को बढ़ा देता है। इसके लिए वह एक डायरी अपने पास रख सकते हैं और पता करें कि आपका पीठ दर्द कब बदलता है और किस प्रकार का तनाव दर्द को ट्रिगर करता है। यह डायरी का अभ्यास उन तत्वों की पहचान करने में सहायक है जो दर्द को बढ़ाते हैं।

3. शुरुआती दौर में ही डिप्रेशन का निदान करें।

कई चिकित्सकों को पीठ दर्द के दौरान होने वाले डिप्रेशन का आकलन करने के लिए आवश्यक रूप से प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। एक चिकित्सक से अवसाद के लक्षणों के बारे में बात करना चिकित्सक को पीठ दर्द और अवसाद दोनों स्थितियों के साथ साथ उपचार पर विचार करने की आवश्यकता के बारे में सचेत कर सकता है।

एक्यूट पीठ दर्द का रोगी शुरुआती दौर के पीठ दर्द से पूरी तरह ठीक हो जाता है परंतु अगर रोगी के साथ अवसाद या डिप्रेशन के लक्षण जुड़े हुए हैं तो उसके पीठ दर्द के क्रॉनिक यानी पुरानी बन जाने की संभावना अधिक होती है।

4. दर्द और डिप्रेशन दोनों के लिए बहु आयामी चिकित्सा की तलाश करें

दोनों का उपचार एक बहू विषयक पाठ्यक्रम है जिसमें चिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर दोनों की निगरानी होने पर उत्कृष्ट परिणाम मिलते हैं। एक टीम दृष्टिकोण के साथ दर्द और अवसाद दोनों की निगरानी की जाती है और दोनों चिकित्सक इस बारे में आपस में बात कर सकते हैं कि प्रत्येक क्षेत्र एक दूसरे को कैसे प्रभावित करता है। चिकित्सकों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि मरीज के शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन उसके मानसिक परिवर्तन से भी संबंधित हो सकते हैं।

अंतिम वाक्य

इन सब के अतिरिक्त यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि दर्द के सामान्य उपचार जैसे दर्द की दवा, गतिविधि प्रतिबंधित करना, बिस्तर पर आराम करना वास्तव में अवसाद को बदतर बना सकते हैं और यह बिगड़ती अवसाद की अवस्था आपकी शारीरिक भंगिमा को भी प्रभावित करती है। अगर आपके रीढ़ रोग विशेषज्ञ आपको मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि समस्या आपके दिमाग में है। इसका मतलब है कि वह एक सकारात्मक कदम उठा रहे हैं जिससे आप के दर्द का शारीरिक और मानसिक स्तर पर संपूर्ण इलाज संभव हो सके।

Introduce Yourself (Example Post)

मेरा नाम डॉ विवेक स्वर्णकार है, मैंने 2002 में एमबीबीएस पूरा किया है और 2005 में एम एस आर्थोपेडिक सर्जरी में पूरा किया है। स्पाइन प्रॉब्लम्स और एंडोस्कोपिक स्पाइन सर्जरी में मुझे विशेष रुचि है। 17 सालों का मेडिकल, ट्रामा ,ज्वाइंट रिप्लेसमेंट और एंडोस्कोपिक स्पाइन सर्जरी अनुभव है। मैं एक यूट्यूबर, ब्लॉगर, ऑरेटर, राइटर भी हूं। 21वीं सदी की अत्यधिक व्यस्त लाइफ स्टाइल में अधिकतम आउटपुट के लिए अच्छी सेहत का होना बहुत जरूरी है। अत्याधुनिक इलाज और अत्याधुनिक सर्जरी उपलब्ध होने के बावजूद सही हेल्थ का नुस्खा रोग की रोकथाम में निहित है। रोग की रोकथाम जिसे हम प्रीवेंटिव हेल्थ केयर नाम देते हैं इसमें वह सारे उपाय शामिल होते हैं जिन से बीमारी की रोकथाम की जाती है। प्रीवेंटिव मेजर या बीमारी की रोकथाम करना किसी भी बीमारी से बचने का सबसे प्रभावी तरीका है। और इसके लिए जरूरत है सही जानकारी की। इस ब्लॉग का उद्देश्य विभिन्न रोगों के बारे में सही जानकारी उपलब्ध कराना है। हेल्थ केयर का भविष्य रोग की रोकथाम में है ना कि रोग हो जाने के बाद दवाई और सर्जरी में। हमें हेल्थ केयर को प्रीवेंटिव हेल्थ केयर की तरफ ले जाना ही होगा अगर हमारे समाज को बीमारी और उसके दुष्परिणाम के बोझ से बचना है।

सदा स्वस्थ रहें।

धन्यवाद

पीठ की सर्जरी के बाद कैसे बैठना और सोना चाहिए?/How to sit and sleep after spine surgery

अगर आपकी स्पाइन सर्जरी हुई है खास तौर पर अगर ओपन सर्जरी हुई है जैसे कि स्पाइनल फ्यूजन, डीकंप्रेशन, इंटर्वर्टेब्रल डिस्क रिप्लेसमेंट, आदि तो डिस्चार्ज टिकट के साथ-साथ आपको यह भी जानकारी लेकर जाना चाहिए कि सर्जरी के बाद में आपको कैसे बैठना और कैसे सोना है क्योंकि स्पाइन सर्जरी से रिकवरी में सही शारीरिक मुद्रा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

स्पाइन सर्जरी के बाद सोने का सही तरीका क्या है?

स्पाइन सर्जरी के बाद सबसे अच्छी सोने की स्थिति यह है कि आप सीधा पीठ के बल लेटे और दोनों घुटनों के नीचे एक तकिया लगा ले या फिर करवट लेकर लेटे और दोनों घुटनों (थोड़ा मुड़े हुए)के बीच में एक तकिया लगा लें।

अगर आप अपने आप को करवट लेकर लेटने में ज्यादा सहज पाते हैं, यानी आप करवट लेकर लेटने में ज्यादा आराम महसूस करते हैं, तो करवट की पोजीशन में यह जरूर ध्यान रखें कि आपके दोनों पैर और घुटने एक के ऊपर एक हो और उनके बीच में तकिया लगा हुआ हो और घुटने भी थोड़े मुड़े हुए हो साथ ही ऊपर का पैर नीचे वाले से थोड़ा आगे की तरफ हो। और सोते समय अपने हाथ को मोड़ कर सर या गर्दन के नीचे ना रखें।

पीठ के बल और करवट लेकर लेटना ,यह दोनों ही लेटने की स्थिति में आपके कमर और डिस्क पर दबाव कम पड़ता है और ऑपरेशन के बाद हीलिंग में मदद मिलती है। हां ,पेट के बल लेटने से हमें अवश्य बचना चाहिए।

बिस्तर से उठने और करवट लेने में क्या ध्यान रखें?

ऑपरेशन के बाद मरीज को बिस्तर पर अपनी स्थिति परिवर्तित करने में दिक्कत महसूस हो सकती है। बिस्तर पर करवट बदलने के लिए लॉग रोल टेक्निक का यूज़ करें। इससे करवट बदलने में असुविधा कम होती है।

लॉग रोल प्रक्रिया में जब आप करवट ले रहे हैं तो पीठ और पैर दोनों को एक साथ घुमाना चाहिए, सिर्फ पीठ को ट्विस्ट ना करें यानी पूरे शरीर को एक साथ घुमा कर करवट लेना चाहिए।

यह लॉग रोल तकनीक बिस्तर पर जाने और बिस्तर से उतरने में भी प्रयोग करना चाहिए।

उदाहरण के लिए अगर आप बिस्तर से दाहिनी तरफ उतरना चाहते हैं तो सबसे पहले पूरे शरीर को एक साथ मोड़कर दाहिनी तरफ करवट ले ले, उसके बाद दाहिनी कोहनी पर दबाव डालते हुए धीरे से उठे और बाएं हाथ से सपोर्ट करके दोनों पैर बिस्तर के किनारे लटका लें। बिस्तर के किनारे आने पर दोनों पैरों को पहले जमीन पर रखें और दोनों पैरों के बल पर खड़े हो जाएं। खड़े होने के लिए पीठ की ताकत का इस्तेमाल ना करें।

स्पाइन सर्जरी के बाद कुर्सी डेस्क पर कैसे बैठना चाहिए?

स्पाइन सर्जरी के बाद देर तक बैठकर काम करना आपके लिए असहज साबित हो सकता है क्योंकि देर तक बैठना आपके रीढ़ की हड्डी और डिस्क पर अतिरिक्त तनाव डालता है।

इसलिए अपनी रीढ़ की हड्डी को उस आरामदायक स्थिति में बनाए रखना जरूरी है ताकि पीठ को अतिरिक्त दबाव का सामना ना करना पड़े। इसके अतिरिक्त हर आधे घंटे में उठ जाए और 3 मिनट की चहलकदमी या 1 मिनट का स्ट्रेचिंग व्यायाम कर ले।

बैठते समय सर और कंधे को आगे की ओर नहीं निकला होना चाहिए यानी slouching नहीं होनी चाहिए। इस तरह से बैठे ताकि आपके कान ,कंधे और कूलहे एक सीध में हो। कोहनी कुर्सी की आर्म रेस्ट पर आसानी से पहुंचती हो। और बैठते समय घुटनों को कूल्हे के स्तर पर होना चाहिए और पांव जमीन पर टिके हुए होने चाहिए अगर कुर्सी की ऊंचाई व्यवस्थित करने पर भी पर आपके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे हैं, तो स्टूल या अन्य सपोर्ट की सहायता ले सकते हैं।

बहुत मुलायम कुर्सी या सोफा पर ना बैठें क्योंकि उसमें आपके कूल्हे का स्तर घुटने के स्तर के नीचे चला जाता है जो रीड की हड्डी पर अतिरिक्त दबाव पैदा करता है।

स्थिर कुर्सी की बजाए घूमने वाली कुर्सी(revolving chair) पर बैठना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है क्योंकि घूमने वाली कुर्सी पर बैठने पर आपको घूम कर चीजें उठाने पर आसानी होगी। स्थिर कुर्सी पर आपको पीठ को मोड़कर उठाना पड़ेगा जो रीड की हड्डी और डिस्क के लिए हानिकारक हो सकता है।

जब भी मुड़े तो पूरे शरीर को एक साथ मोड़े शरीर के निचले हिस्से को स्थिर रखकर सिर्फ रीड की हड्डी(पीठ) को मोड़ने से नुकसान हो सकता है। जरूरी वस्तुओं को अपने आसपास ही रखें जिससे कि बार-बार उठकर या शरीर को मोड़ कर उनको उठाने की जरूरत ना पड़े।

बैठने और सोने के ऊपर दिए गए सावधानियों को अगर आप पालन करते हैं तो इससे स्पाइन सर्जरी के बाद रिकवरी में काफी मदद मिलती है। ध्यान रहे बड़ी स्पाइन सर्जरी के बाद सही रिकवरी होने में भी कुछ समय लगता है अतः बताई गई सावधानियां और व्यायाम को सही ढंग से पालन करें ताकि आपको सर्जरी से पूरी तरीके से रिकवर करने में आसानी हो। ऊपर दी गई सावधानियां लगभग सभी बड़ी स्पाइन सर्जरी में लागू होती हैं फिर भी आप अपने केस के लिए अपने चिकित्सक से भी यह सावधानियां और व्यायाम समझ कर उसके अनुसार पालन करें।

आपको ब्लॉक कैसा लगा कृपया लाइक सब्सक्राइब करें।धन्यवाद

स्पाइन की समस्या के लिए आप मेरा यू ट्यूब चैनल भी फॉलो कर सकते हैं।Dr vivek swarnkar

रात में पैर के पंजे में दर्द के 5 कारण और समाधान

कुछ लोगो को पैरों में दर्द सिर्फ रात में ही होता है। इससे नींद बाधित हो सकती है या अच्छी गुणवत्ता वाली नींद मुश्किल हो सकती है।

अगर आप रात में पैरों के दर्द से पीड़ित हैं तो सामान्य कारणों का पता लगाने के लिए यह लेख अवश्य पढ़ें और प्रत्येक स्थिति का सबसे अच्छा इलाज कैसे करें, यह जानें। कई मामलों में कुछ घरेलू उपचार रात में होने वाले पैर दर्द को कम कर सकते हैं, पर आपको डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता पड़ सकती है।

पैर के पंजे में दर्द के कुछ कारण

1. प्लांटर फासिटिस

वह टिश्यू जो आपके पैर के तलवों में आगे से लेकर पीछे एड़ी तक जाता है उसे प्लांटर फेसिया कहते हैं। जब इस पर तनाव या खिंचाव पड़ता है तो इसमें सूजन आती है, इसे प्लांटर फासिटिस कहते हैं।

इसके कुछ मुख्य कारण निम्न है।

  • फ्लैट फुट
  • मोटापा
  • हाई फुट आर्च
  • टाइट काफ मांसपेशियां
  • गाउट
  • डायबिटीज

2. गर्भावस्था(प्रेगनेंसी)

गर्भावस्था के समय शरीर में कैल्शियम का स्तर असामान्य रूप से परिवर्तित होता है इस बदलते हुए कैल्शियम स्तर की वजह से गर्भावस्था में पैरों में ऐठन या दर्द होता है। इसके अलावा रक्त परिसंचरण धीमा होना, डीवीटी होना, थकान पानी की कमी और वजन का बढ़ना भी गर्भावस्था में पैर के दर्द का कारण बनते हैं।

3. मधुमेह (डायबिटीज)

खून में शुगर की अधिकता समय के साथ तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाती है। इससे पैरों की तंत्रिका ए भी प्रभावित होती हैं और समय के साथ दर्द और झनझनाहट पैरों में बढ़ जाती है।

4. फाइब्रोमायलजिया

फाइब्रॉम्याल्जिया एक पुरानी स्थिति का रोग है जिसमें दर्द खिंचाव और कठोरता शरीर के विभिन्न भागों में आती है, इसमें पैरों और अन्य क्षेत्रों में दर्द भी शामिल है। रात में एंटी इन्फ्लेमेटरी हार्मोन कोर्टिसोल का कम स्तर इस दर्द को जबरदस्त तरीके से बढ़ावा देता है।

5. नसों ( नर्व)का दबना

आपके टखने में कुछ नसों के दबाव से टार्सल टनल सिंड्रोम हो सकता है। या पीठ या कूल्हे में सियाटेक नर्व के दबाव से भी दर्द हो सकता है। दोनों ही मामलों में रात में इन नसों पर दबाव बढ़ जाता है जिसकी वजह से इनका दर्द रात में ज्यादा महसूस होता है।

इन 5 कारणों के अलावा और भी कई कारणों की वजह से पैर में दर्द होता है जैसे दिनचर्या की अनियमितताएं, पैर के पंजे की बनावट में कमी आदि।

क्या रात में पंजे के दर्द के कुछ घरेलू उपचार हैं?

कभी-कभी बिना डॉक्टर को दिखाएं घर में ही आप पंजे के दर्द का उपचार कर सकते हैं कुछ उपाय निम्न है।

1. पानी की कमी ना होने देना

ज्यादा पानी पीकर आप हाइड्रेटर रह सकते हैं जिससे रात में मांसपेशियों में क्रैंप दूर करने में मदद मिलती है। ज्यादा पानी पीने से पैरों में सूजन में भी कमी आती है।

2.टो और हील लिफ्ट स्ट्रेचिंग

पैर की एड़ी और पंजेको उठाने का साधारण स्ट्रेचिंग व्यायाम पंजे के दर्द में काफी राहत पहुंचा सकता है खास करके प्लांतर फेसिाइटिस में।

कैसे करें

1.पैर को जमीन पर सीधा रखकर फायर की उंगलियों को ऊपर की तरफ उठाएं और फिर उसे शरीर की तरफ मोड़े। इस अवस्था में 10 सेकंड तक स्थिति बनाकर रखें। कम से कम 10 बार इसको दोहराएं।

2. पैर के पंजों के बल खड़े होकर पीछे एड़ी को उठाएं 10 सेकंड तक उस स्थिति में रोककर रखें। इसे भी कम से कम 10 बार दोहराएं।

यह पंजे और एड़ी के स्ट्रेचिंग व्यायाम 10- 10 के तीन सेट में एक बार करें और इसे दिन में कई बार दोहराएं।

3. बर्फ से सिकाई

तेज चुभने वाले दर्द के लिए अपने पैरों पर आइस पैक रखना फायदेमंद हो सकता है। आइस पैक को कपड़े में लपेटकर पैर पर रखें जिससे या सीधा आपके पैर की त्वचा को ना लगे। आइस पैक को 10 मिनट के लिए छोड़ दें। इसे शाम को हर घंटे दोहराए।

4. मालिश

एक मुलायम और आरामदायक मालिश आपके पैर में रक्त परिसंचरण सुधारने और मांसपेशियों में खिंचाव को कम करने में सहायक होती है।

अगर आपको पैर के पंजों में दर्द लगातार बना हुआ है या धीरे-धीरे ज्यादा बढ़ता जा रहा है तो अपने डॉक्टर से सलाह लेना अत्यंत आवश्यक है। बहुत तेज दर्द ,सुन्नपन और चलने में कठिनाई होना- यह लक्षण गंभीर समस्या की ओर इशारा करते हैं।

उपरोक्त समस्याओं में चिकित्सक क्या समाधान दे सकते हैं।

अगर घरेलू उपचार रात के समय होने वाले पैर के दर्द में सहायक नहीं है तो अपने डॉक्टर से बात करना चाहिए और वह निम्न रोगों में निम्न कुछ उपाय सुझा सकते हैं।

प्लांटर फैसिटिस: शू इंसर्ट या आर्थोपेडिक हील पैड इसमें मदद कर सकते हैं इसके अलावा कंट्रास्ट बाथ और पंजे के व्यायाम भी मददगार होते हैं।

डायबिटीज: ब्लड शुगर उचित प्रबंधन से पैरों के दर्द को कम करने में मदद मिलती है।

फाइब्रोम्यालजिया: फाइब्रॉम्याल्जिया का समूल जड़ से कोई इलाज उपलब्ध नहीं है पर कुछ दवाएं जैसे स्टीरॉयड और दर्द निवारक इसमें मदद पहुंचा सकते हैं।

प्रेगनेंसी: गर्भावस्था में पैरों में दर्द होने पर शरीर में कैल्शियम का स्तर जांच करने की आवश्यकता पड़ सकती है अगर शरीर में कैल्शियम या अन्य मिनरल का स्तर कम है तो डॉक्टर आपको यह सप्लीमेंट दे सकते हैं।

नर्व का दबना: पैरों में नस का दबना अक्सर अस्थाई होता है और बिना किसी इलाज या घरेलू इलाज के द्वारा ज्यादातर मामलों में ठीक हो जाता है। पर अगर नस का दबाव कमर की वजह से है या शादी का है तो डॉक्टर से संपर्क करके वह जांच करा कर ही उचित इलाज करना चाहिए।

अंतिम वाक्य

उपचार और रोकथाम ही यह सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम उपाय है कि आपका पंजे का दर्द कम हो और आपको अच्छी नींद मिले। आप अपने पैरों की देखभाल में सही फिटिंग के जूते ,स्ट्रेचिंग व्यायाम और सही लाइफस्टाइल अपनाकर पैर के पंजों के दर्द कम करने की दिशा में अपना योगदान दे सकते हैं। परंतु सूजन होने या नसों पर दबाव होने पर , स्थिति खराब होने से रोकने के लिए डॉक्टर से अवश्य मिलें।

ब्लाग आपको कैसा लगा कृपया लाइक और कमेंट दें।

बच्चों के लिए जूते खरीदते समय कैसे जूतों का चयन करें

जब आप अपने बच्चों के लिए जूतों की खरीदारी करने जाते हैं तो सबसे प्यारी जोड़ी देखकर अभिभूत हो जाते हैं। यह स्वाभाविक है। लेकिन अपने छोटे लड़के या लड़की के लिए सही सबसे अच्छा जूता चुनना फैशन की तुलना में फिट,कार्य और पैरों के सही विकास पर ज्यादा निर्भर होना चाहिए। एक अच्छा सही जूता पाने का प्रयास करने से उसके स्वस्थ पैरों को विकसित करने में जीवन भर मदद मिलती है।

एक बच्चे का पैर 18 साल की उम्र तक विकसित करना जारी रहता है, यही कारण है उचित जूता आपके बच्चे के पैर के सही विकास , पैर के स्वास्थ्य और कार्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

अल्प अवधि में जो जूते सही ढंग से फिट नहीं होते हैं वो आपके नन्हे मुन्ने के पैरो में दर्द पैदा कर सकते हैं, साथ ही कैलिस,कॉर्न, इंग्रोविंग टो नेल,फफोले भी।

लंबी अवधि में, पैर और पैर की अंगुली की विकृति(deformity) जैसे अधिक गंभीर मुद्दे विकसित हो सकते हैं। यदि आपका बच्चा अपने पूरे विकास के वर्षों में खराब फिटिंग के जूते पहनता है – विशेष रूप से 5 वर्ष की आयु से पहले तो यह मुद्रा(posture) या साथ ही साथ अन्य दीर्घकालिक समस्याएं भी पैदा कर सकता है – या यह जीवन में बाद में पीठ दर्द का भी कारण बन सकता है। वास्तव में वयस्क में पैरो की कई समस्याएं बचपन में खराब फिटिंग वाले जूते पहनने से होती हैं।

जूतों की खरीदारी का क्या समय होना चाहिए

जूते की खरीदारी हमेशा दोपहर के बाद या शाम के समय की जानी चाहिए, क्योंकि दिन के दौरान पैर सूज जाते हैं।

बच्चों के पैर के विकास के महत्वपूर्ण बिंदु

पैदा होने पर पैर में 22 हड्डियां होती हैं ,व्यस्क में पैर 26 हड्डियों और 35 जोड़ों से मिलकर बना होता है जिसे लिगामेंट एक साथ रखने में मदद करता है छोटे बच्चों का पैर लचीला और काफी वसायुक्त होता है। बच्चे प्रायः 8 से 18 महीने के बीच चलना शुरू कर देते हैं। जब वे पहली बार चलना शुरू करते हैं अधिकांश बच्चे सपाट पैर(फ्लैट फुट) वाले होते हैं, समय के साथ(6 साल तक) धीरे धीरे पैर का आर्च विकसित होता है, इस उमर में बच्चे कभी-कभी पैर को अंदर की ओर मोड़ कर चलते हैं लेकिन जैसे-जैसे मांसपेशियों की ताकत ,लिगामेंट की कठोरता और हड्डियां विकसित होती है वैसे ही पंजा पूरा विकसित हो जाता है और बच्चे सीधा पैर रखकर चलने लगते हैं।

चलना सीखने वाला बच्चा पैरों के तलवों से महत्वपूर्ण संवेदी सूचनाएं प्राप्त करता है जिससे पैर के हड्डियां मांसपेशियां और लिगामेंट विकसित होने में मदद मिलती है। जूते उन्हें चोट ,गर्मी और ठंड से बचाव में मदद करते हैं। इसलिए जितना हो सके चलना सीखने वाले बच्चों को नंगे पैर या बहुत ही मुलायम तलवे वाले जूते पहन कर चलाना चाहिए ताकि वे महसूस कर सके कि वह अपने पैरों से क्या छूते हैं।

समय के साथ जब बच्चे अपने दम पर सामान्य रूप से चलने लगे तो उन्हें मजबूत तलवे वाले जूते की तरफ ले जाया जा सकता है।

बच्चों के जूतों में चार प्राथमिक विशेषताएं होनी चाहिए ताकि उनके पैरों को स्वस्थ और स्वाभाविक रूप से विकसित होने में मदद मिल सके;

लचीलापन(flexibility)

सपोर्ट(support)

फिट (fitting)

गुणवत्ता(quality)

कैसे पता करें कि जूता बदलने की जरूरत है।

ज्यादातर छोटे बच्चे शिकायत नहीं कर पाते कि जूता उनके लिए असहज है या उसे बदलना चाहते हैं।इसलिए समय-समय पर अपने बच्चों के जूतों की जांच करना एक अच्छा उपाय है कि जो अभी उन्होंने पहना है वह उनके लिए काम कर रहा है या नहीं।

यह देखिए कि जूता एक तरफ को कहीं फूल तो नहीं रहा, जूते में पैर की उंगलियां ऊपर की ओर तो नहीं मुड़ रही, जूता किसी तरफ कस तो नहीं रहा, पैर के किनारे या उंगलियों पर निशान तो नहीं बना रहा , जूते के तलवे और एड़ी अन्य जगहों से ज्यादा घिसे हैं। तो यह समय है जब आपके बच्चे के जूते को बदलने की जरूरत है।

पैरों के सही विकास के लिए जूता कैसे चयन करें।

बहुत महंगा जूता खरीदने का विचार अच्छा नहीं है बल्कि पैरों के विकास को आधार बनाकर सही जूते का चयन करना चाहिए। और जूता भी कुछ महीनों में बच्चे की बढ़त के अनुसार कई बार बदलना पड़ता है।

जूतों के चयन के लिए किसी प्रशिक्षित जूते की दुकान पर जाना चाहिए जहां पर प्रशिक्षित जूते की नाप लेने वाले और जूते के चुनाव में सही मार्गदर्शन देने वाले कर्मचारी हों। परंतु भारत में सभी शहरों में ऐसे अनुभवी प्रशिक्षित कर्मचारी कम ही उपलब्ध हो पाते हैं इसलिए हमें भी जूते की नाप और जूते का चुनाव पैरों के सही विकास को ध्यान में रखकर कैसे करना चाहिए, इसके बारे में ज्ञान होना आवश्यक है।

जूते की सही नाप कैसे करें

चूकीं बच्चे का एक पैर दूसरे पैर से बड़ा होता है इसलिए बड़े पैर की नाप लेकर जूते का चुनाव करना चाहिए और इसे शाम को करना चाहिए। अगर बच्चा एक पैर पर वजन देकर खड़ा हो सकता है,तो एक स्टैंड रखकर इसे ट्राई करे क्योंकि इससे पैर लंबा हो जाता है और सटीक साइज पता करने में मदद मिलती है।

ये भी ट्राई कर सकते हैं।

यदि जूते में एक हटाने योग्य शू इंसर्ट है, तो इसे बाहर निकालें और अपने बच्चे को उस पर खड़ा करें ताकि आपको बेहतर तरीके से पता चल सके कि वहां कितना स्पेस है। अगर बच्चे की एड़ी , शू इंसर्ट की एड़ी के ठीक ऊपर हो तो बच्चे के पैर की उंगलियों और शू इंसर्ट के सामने के बीच लगभग आधा इंच की जगह होनी चाहिए।

जूते में क्या देखना चाहिए

1. जूते को पैर के साथ रख कर देखें जूते की लंबाई बच्चे की सबसे लंबी उंगली की लंबाई से डेढ़ से 2 सेंटीमीटर ज्यादा होनी चाहिए। 3 सेंटीमीटर से ज्यादा जगह होने पर अधिक बड़ा जूता हो जाएगा, 1 सेंटीमीटर या उससे कम है तो जूता छोटा पड़ेगा।

2. अंगूठा टेस्ट का इस्तेमाल करें अंगूठे की लंबाई 2 सेंटीमीटर तक होती है अंगूठे से बच्चे के पैर की बड़ी उंगली के आगे और जूते के शुरुआती छोर के बीच में दबा कर देखें, अंगूठे की मोटाई के बराबर जगह होनी चाहिए।

3. बच्चे की एड़ी और जूते के बीच में अपनी छोटी उंगली(कानी उंगली) डाल कर देखें, यह आरामदायक तरीके से अंदर जानी चाहिए, ज्यादा ढीली या ज्यादा कसी ना हो। कसे होने पर जूते के पीछे का हिस्सा बच्चे के पैर की एड़ी पर फफोले बना सकता है और ज्यादा ढीला होने पर चलते समय पैर बाहर निकल सकता है।

4. बच्चे के पैर को एड़ी से मोड़ कर देखें बच्चे को जूता पहना कर एड़ी हाथ से पकड़ कर दोनों बगल घुमा कर देखें यदि जूता ईडी से रगड़ रहा है तो यह फफोले या कैलस बना सकता है।

5. जूता पहना कर ऊपर से बच्चे की छोटी उंगली चेक करें जूते के ऊपर से छूने पर आपको बच्चे की छोटी उंगली महसूस होना चाहिए और यह जूते के दीवाल से कसी न हो बच्चा अपनी छोटी उंगली जूते के अंदर मोड़ सके। अगर छोटी उंगली कसी है या उसे मोड़ नहीं पा रहा है तो समझ लेना चाहिए जूते का साइज छोटा है।

6.जूता की गहराई और जगह चेक करें जूते की गहराई चेक करके सुनिश्चित करें की जूते का ऊपरी हिस्सा पैर की उंगली या उंगलियों के नाखून को तो नहीं दबा रहा है। जूते के आगे का हिस्सा गोल होना चाहिए ना कि नुकीला या चपटा, जिससे पैर की उंगलियों को पर्याप्त जगह मिल सके।

7. जूते का ऊपरी भाग लेदर, कैनवास या दूसरे जाली नुमा मटेरियल का बना होना चाहिए, जिससे हवा आ जा सके और पैर सांस ले सके क्योंकि बच्चों के पैर में पसीना बहुत निकलता है। प्लास्टिक आदि मानव निर्मित मटेरियल के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

8. जूते के अंदर का सोल(तलवा) भी सोखने वाले मटेरियल का बना होना चाहिए। छोटे बच्चों के सोल में आर्च सपोर्ट की जरूरत नहीं होती। 18 महीने के बाद पैर में आर्च का विकास शुरू होता है और 5-6 साल की उम्र तक पूरा हो जाता है।

9. बाहरी सोल (तलवा)कुशन और लचीलापन देने वाला होना चाहिए। रबड़ के बने हुए तलवे बच्चों के लिए बहुत अच्छे होते हैं क्योंकि यह स्लिप होने से बचाते हैं और लचीलापन भी प्रदान करते हैं। पैटर्न वाले बाहरी सोल का भी चुनाव कर सकते हैं क्योंकि यह जमीन पर ग्रिप(पकड़) बनाए रखता है और बच्चों के दौड़ने पर गिरने से बचाता है।

10. एड़ी छोटे बच्चों को एड़ी की कोई आवश्यकता नहीं होती है। सपाट बाहरी तलवों से चलना आसान हो जाता है। बड़े बच्चे एड़ी वाले जूते पहन सकते हैं लेकिन वह बहुत अधिक(1इंच से ज्यादा लंबा) नहीं होना चाहिए क्योंकि ऊंची एड़ी की वजह से पैर आगे खिसक जाता है और पैर की उंगलियों को जूते के अंदर की तरफ दबा सकता है।

11. फीते,वाल्क्रो या स्लिप इन शू फीते या वाल्क्रो वाले जूते का इस्तेमाल करना अच्छा है स्लिप इन या बैकलेस जूतों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

उम्र के हिसाब से सही जूता चुनने के कुछ टिप्स

1.प्री वाकिंग शू

बहुत छोटे बच्चों(up to 18 मंथ) को चलना शुरू करने से पहले जूते की जरूरत नहीं होती है उन्हें घर के अंदर नंगे पैर या गरम चौड़े मोजे पहना कर चलाया जाना चाहिए। अगर बाहर ले जाने पर जूते की जरूरत है तो बिना सोल के ऐसे लचीले जूते जो पैर को ना बांधे, का इस्तेमाल करना चाहिए।

2.वाकिंग(टोडलर जूते)

टॉडलर्स (9 महीने से 3 साल की उम्र)मैं बिना एड़ी व आर्च के लचीले जूते, सांस लेने वाले मटेरियल जैसे लेदर या कैनवास के बने हुए लेना चाहिए। क्योंकि इस उम्र के बच्चों में पसीना बहुत आता है इसलिए सिंथेटिक जैसे प्लास्टिक व फाइबर से बचना चाहिए। हल्के जूते चुने क्योंकि बच्चे इस उम्र में चलने में बहुत अधिक ऊर्जा खर्च करते हैं। घर के अंदर जैसे संरक्षित वातावरण में नंगे पैर रखना बेहतर है।

3. स्कूल जाने वाले बच्चों के जूते

स्कूली उम्र के बच्चों के लिए स्टाइल और शू फिट महत्वपूर्ण है। इस उम्र में, वे एथलेटिक जूते, सैंडल, लंबी पैदल यात्रा के जूते आदि कई विकल्पों में से चुन सकते हैं। उचित मूल्य, लचीलापन, अच्छी तरह हवादार जूते देखें जिसमे पैरों के विकास के लिए पर्याप्त जगह हो। यदि आपको फिट होने वाले जूते खोजने में बहुत कठिनाई होती है, या यदि आपके बच्चे को कॉलस, घाव या अन्य पैर की समस्यायें विकसित होने लगती हैं, तो अपने आर्थोपेडिक सर्जन से परामर्श लें।

यदि आपके परिवार में पैर की समस्याओं का कोई इतिहास है तो अपने बच्चे की जल्द जांच कराना महत्वपूर्ण है। फ्लैट फुट या अन्य समस्याओ वाले माता-पिता को अपने बच्चे(जैसे ही वह चलने लगे) को ऑर्थोपेडिक सर्जन या बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए।

आपको या ब्लॉग कैसा लगा कृपया लाइक करें और कमेंट भेजें।

स्टेम सेल उपचार क्या है और कैसे पहचानें कि हमारे कमर दर्द के उपचार के लिए स्टेम सेल थेरेपी उपयुक्त है/what is stem cell treatment and how to identify that stem cell therapy is suitable for your back pain

कमर के निचले हिस्से में दर्द के कारणों के कई स्रोत हैं जैसे मांसपेशियां ,लिगामेंट,डिस्क, फैसेट ज्वाइंट्स, वर्टेब्रा(रीढ़ की हड्डी),नर्व (तंत्रिका)। स्टेम सेल उपचार के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति वह है जिसको दर्द पूर्णतया डिस्क की वजह से हो रहा हो, और उसमें परंपरागत non-surgical उपचार असफल हो गया हो। यहां यह भी जान लेना अत्यंत जरूरी है की कोई एक प्रकार का इलाज कमर दर्द के मरीज के लिए सर्वथा उपयुक्त नहीं हो सकता क्योंकि एक ही प्रकार का रोग होने पर भी यह मरीज की अलग-अलग परिस्थितियों जैसे उम्र ,अन्य रोग, रोग की स्थिति, उम्र ,लिंग आदि पर निर्भर करता है इसलिए एक ही प्रकार के रोग के लिए अलग-अलग मरीजों में इलाज अलग अलग हो सकता है।

हालांकि हाल के वर्षों में विश्व में इलाज के तरीको में झुकाव non-surgical तरीकों और सर्जरी में भी non -invasive ,एंडोस्कोपिक,और less invasive तरीकों की तरफ हुआ है।

स्टेम सेल उपचार भी इसी कड़ी में least invasive तरीका है।

स्टेम सेल इंजेक्शन उपचार क्या है?

इसमें मरीज की ही कूल्हे की हड्डी से इंजेक्शन के द्वारा बोन मैरो(अस्थि मज्जा) निकाल कर (जिसमें स्टेम सेल होती हैं )को सीधे रीढ़ की डिस्क में इंजेक्ट किया जाता है।यह ओपीडी प्रक्रिया है। इसमें ना तो मरीज को भर्ती करना पड़ता है और ना ही बेहोश करना पड़ता है। उसी दिन मरीज घर जा सकता है।

स्टेम सेल थेरेपी की प्रक्रिया:

1.रोगी के कूल्हे या शरीर के अन्य हिस्सों से अस्थि मज्जा को एस्पिरेटेड या निकाला जाता है।

2.अस्थि मज्जा को सेंट्रीफ्यूज किया जाता है, जो स्टेम कोशिकाओं को मज्जा में अन्य घटकों से अलग करता है।

3.फिर इस अंतिम उत्पाद को अल्ट्रासाउंड इमेजिंग का उपयोग करके सीधे प्रभावित डिस्क में इंजेक्ट किया जाता है।

इस प्रक्रिया को ओपीडी या माइनर ओटी में ही जागते हुए किया जा सकता है, और प्रक्रिया के बाद का दर्द आमतौर पर प्रक्रिया के एक सप्ताह बाद तक सीमित होता है। दूसरे शब्दों में, रोगी क्षतिग्रस्त डिस्क के लिए यह प्रक्रिया करवा सकते हैं और कम से कम एक सप्ताह में काम पर वापस आ सकते हैं।

स्टेम सेल उपचार के लिए आदर्श मरीज का मानदंड

  • मरीज का दर्द फेसट ज्वाइंट की वजह से नहीं होना चाहिए
  • कोई भी स्पाइन इंस्टेबिलिटी नहीं होनी चाहिए
  • पैरों में तेज शूटिंग दर्द या रेडिक्यूलोपैथी नहीं होनी चाहिए
  • कमर दर्द डिस्क की वजह से होना चाहिए डिस्क का एक्सट्रूजन या सीक्वेस्ट्रेशन नहीं होना चाहिए और माइल्ड या मॉडरेट डिस्क डिजनरेशन होना चाहिए(डिस्क की हाइट का नुकसान 50% से कम हो)

स्टेम सेल थेरेपी का उद्देश्य डिस्क की वजह से होने वाले दर्द को कम करना है। स्टेम सेल इंजेक्शन से यह परिणाम डिस्क में सूजन कम करके ,डिस्क को हील या रिपेयर करके और डिस्क का हाइड्रेशन बढ़ाकर होती है।

डिस्क ही कमर दर्द पैदा कर रही है इसके लिए क्या परीक्षण करते हैं?

अगर लंबर फेसट ज्वाइंट में इंजेक्शन लगाने पर या मीडियल ब्रांच ब्लॉक करने पर तुरंत दर्द में आराम मिलता है तो यह दर्द फेसेट जॉइंट की वजह से है डिस्क की वजह से नहीं। और अगर मरीज का दर्द बना रहता है तो अधिक संभावना है कि यह दर्द डिस्क की वजह से हो।

डिस्कोग्राम करके भी डिस्क से होने वाले दर्द का पता लगाया जाता है।

परंपरागत स्पाइन सर्जरी के क्या विकल्प है और इनके क्या फायदे नुकसान है?

स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी:कई वर्षों से स्पाइनल फ्यूजन एक विकल्प है, इसमें स्पाइन के एक भाग को स्क्रु प्लेट और बोन ग्राफ्ट की मदद से जाम या फ्यूज कर दिया जाता है जिससे उस सेगमेंट विशेष की गति बंद हो जाती है। इसे ओपन और मिनिमली इनवेसिव दोनों तकनीको से किया जाता है। हालांकि फ्यूजन सर्जरी में बहुत सारे जोखिम होते हैं और रिकवरी पीरियड भी काफी लंबा होता है। सामान्यतः इसमें एक-दो दिन का अस्पताल में रुकना और लगभग 1 साल तक पूरी रिकवरी में लगता है। मिनिमली इनवेसिव स्पाइन फ्यूजन में भी कम से कम 6 हफ्ते काम छोड़ना पड़ता है। और अगर आपका घर शारीरिक मेहनत का है तो कम से कम 3 महीने कार्य से बाहर रहने की संभावना होती है।

स्पाइनल फ्यूजन के बाद भविष्य में सर्जरी की संभावना

स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी के साथ दूसरा मुद्दा यह है की डिस्क के एक सेगमेंट की गति खत्म हो जाने के बाद उसके ऊपर और नीचे के सेगमेंट पर तनाव बढ़ जाता है। और इस तरह आसपास के डिस्क लेवल पर सर्जरी की संभावना 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष रहती है। लगभग 50% से ज्यादा लोग पहले के लेवल पर सर्जरी के बाद 20 साल में उसके आसपास दूसरे लेवल पर सर्जरी जरूर कराते हैं।

इस कारण से कृतिम डिस्क विस्थापन(Artificial disc replacement ADR) विकसित किया गया है। आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट गंभीर डिस्क डिजनरेटिव रोगियों के लिए स्पाइनल फ्यूजन का बेहतर विकल्प है।

आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट(ADR)

ADR में दर्द वाली डिस्क को हटाकर धातु और प्लास्टिक से बने डिस्क के इंप्लांट को लगाया जाता है(कूल्हे और घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी की तरह)

आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी की एक कमी यह है यह रीढ़ के पीछे के जोड़ फेसेट जॉइंट से उत्पन्न दर्द को प्रभावित नहीं करती। और इसके लिए पेट की तरफ से जाकर रीड की हड्डी की सर्जरी करानी पड़ती है जिसमें प्रमुख खून की धमनियों को भी नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। और इसमें भी अस्पताल में रुकना पड़ता है और रिकवरी में 6 हफ्ते से लेकर 1 साल तक का समय लगता है।

महंगी सर्जरी और कार्य का नुकसान

फ्यूजन सर्जरी और आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट दोनों में ही ऑपरेशन के बाद फिजिकल थेरेपी(शारीरिक चिकित्सा) की आवश्यकता पड़ती है। स्पाइनल इंप्लांट और अस्पताल में रुकने की वजह से दोनों में ही महंगी सर्जरी हो जाती है। इसके अलावा 6 हफ्ते से लेकर कुछ महीनों तक कार्य का नुकसान भी होता है। इन सारे पहलुओं को देखते हुए स्टेम सेल थेरेपी उचित मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है।

स्टेम सेल थेरेपी के फायदे

कम इनवेसिव प्रक्रिया: यह लोकल एनसथीसिया में किया जाने वाला ओपीडी प्रोसीजर है,लगभग 2घंटे में हो जाता है और बाद में दर्द की दवा नही लेनी पड़ती है।

स्टेम सेल के रिजेक्शन का जोखिम नहीं: क्योंकि यह मरीज के अपने बोन मैरो की कोशिकाएं होती हैं इसलिए इसमें रिजेक्शन का कोई जोखिम नहीं है।

प्राकृतिक डिस्क को पुनर्जीवित करना:स्टेम सेल के द्वारा प्राकृतिक खराब हुई डिस्क ही पुनर्जीवित की जाती है बाहर से आर्टिफिशियल डिस्क या इंप्लांट नहीं लगाया जाता है।

काम का कोई महत्वपूर्ण नुकसान नहीं: ओपीडी प्रक्रिया और जल्दी रिकवरी होने की वजह से आपके कार्यक्षेत्र का नुकसान न्यूनतम होता है।

आज स्टेम सेल उपचार तेजी से डिस्क डिजनरेशन जैसे कमर दर्द के रोगों के लिए वैकल्पिक उपचार बन रही है। परंतु इसके लिए सही अभ्यर्थी का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए मैं आप को प्रोत्साहित करना चाहता हूं कि फ्यूजन सर्जरी या आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट सर्जरी की प्रक्रिया से गुजरने से पहले अपने डॉक्टर से उनकी उपचार योजना को समझने के लिए प्रश्न अवश्य करें।

Slip disc के कांसेप्ट को समझने लिए ये यू ट्यूब वीडियो देखें।

आपको यह ब्लॉग कैसा लगा कृपया लाइक और कमेंट और शेयर करें क्योंकि इससे मेरा मोटिवेशन बना रहता है।

क्या पानी की कमी कमर दर्द और स्लिप डिस्क बढ़ा सकती है?/is dehydration increases back pain and slip disc

यह जरूर सुनने में आश्चर्यजनक लग सकता है क्योंकि हमने ज्यादातर पानी की कमी से सूखा, बीपी लो हो जाना, गला सूख जाना ,चक्कर आना आदि के बारे में सुना है लेकिन यह तथ्य भी सत्य है की पानी की कमी से आपको स्लिप डिस्क या कमर का दर्द बढ़ सकता है । तो इस ब्लॉग में इसी के बारे में बात करेंगे कैसे पानी की कमी से स्लिप डिस्क या कमर दर्द बढ़ जाता है और क्या तरीके अपनाकर हम इससे बच सकते हैं।

पानी की कमी कैसे कमर दर्द को बढ़ाती है?

हमारी रीड की हड्डी में जो डिस्क होती है उसमें जेली की तरह एक पदार्थ होता है इसमें पानी संचित रहता है यह पानी डिहाइड्रेशन में सूख जाता है जिसकी वजह से डिस्क की तरलता और संपेडता कम हो जाती है।

आमतौर पर पूरे दिन हमारी रीढ़ की हड्डी प्राकृतिक टूट-फूट से होकर गुजरती है, जिससे धीरे-धीरे डिस्क का पानी निकल जाता है पर आमतौर पर इससे कोई समस्या नहीं आती क्योंकि जब हम चलते हैं तो गुरुत्वाकर्षण की वजह से पानी पुनः डिस्क में पहुंच जाता है लेकिन जब हम पानी कम पीते हैं ,पानी की कमी होती है तो डिस्क रिहाइड्रेट नहीं हो पाती और वह सूखकर सिकुड़ने लगती है और फिर यहीं पर परेशानी शुरू होती है ,दबाव पड़ने पर डिस्क की दबाव सहने की क्षमता कम हो जाने की वजह से डिस्क bulge या हेर्निएट हो जाती है और पीछे नसों को दबा सकती है जिसकी वजह से ये कमर दर्द और सियाटीका का दर्द होने का कारण बनती है।

डिहाइड्रेटेड डिस्क के क्या लक्षण होते हैं?

डिहाइड्रेटेड डिस्क के आमतौर पर लक्षण कमर के निचले भाग में अत्यधिक तेज दर्द और पैरों में सुन्नपन आना है। निम्नलिखित लक्षण अतिरिक्त चेतावनी का संकेत हैं।

  • कमर के निचले हिस्से में फूल जाना (bulging spot) का बनना।
  • पैरों में तेज शूटिंग दर्द होना।
  • पैरों में झुनझुनी या सुन्नता।
  • पैर की मांसपेशियों में कमजोरी
  • पैर में रिफ्लेक्श का ना होना

पानी की कमी से कैसे बचा जा सकता है?

पानी के बारे में सबसे अच्छी बात यह है या हर जगह है और लगभग मुफ्त में उपलब्ध है। इसका मतलब है कि पानी की कमी उसे होने वाले कमर दर्द को दूर करना आसान है। यहां पर कुछ सुझाव दिए गए जो आपको पानी की कमी से दूर रखना और आपकी डिस्क को हाइड्रेटेड करने में सहायक हैं।

1. ज्यादा पानी पिएं।

सामान्य तौर पर यह कहा जाता है कि हमें एक से 2 लीटर पानी प्रतिदिन पीना चाहिए पर यह पूरी तरह फिट नहीं बैठता क्योंकि अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग पानी की आवश्यकता का स्तर अलग अलग होता है। उदाहरण के लिए एक एथलीट को पानी की अधिक आवश्यकता होती है उस आदमी से जो व्यायाम नहीं करता। गर्मियों में शरीर में पानी की अधिक आवश्यकता होती है दूसरे मौसम के अपेक्षा। मोटे लोगों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है।

2.एक्सरसाइज या वर्कआउट के समय पानी जरूर पिएं।

एक सामान्य आदमी को व्यायाम से दौरान आधा लीटर से डेढ़ लीटर तक पानी का नुकसान हर घंटे के व्यायाम पर हो सकता है।

एक तरफ जहां अधिकांश लोग कसरत करते समय पानी पीते हैं वही काफी लोग पसीने से होने वाले पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं पीते हैं। आमतौर पर लोग प्यास लगने के आधार पर पानी पीते हैं। प्यास लगने के आधार पर पानी पीना निश्चित रूप से अच्छा संकेत है कि आपको पीना चाहिए ,पर यह दूसरी तरफ यह भी इशारा करता है कि आप पहले से डिहाइड्रेटेड है।

स्वास्थ्य की दूसरी चीजों की तरह पानी पीने का पैमाना भी इस धरती पर हर एक आदमी के लिए अलग-अलग है। यह इसलिए क्योंकि हर इंसान अलग है। शरीर का वजन, कसरत का प्रकार और तीव्रता ,आसपास का तापमान, शारीरिक फिटनेस आदि चीजों पर यह निर्भर करता है कि आप कितना पसीना निकालते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने शरीर को स्वयं जानिए और यह पता लगाइए कि आपको कसरत के दौरान कितने पानी की आवश्यकता है।

वैसे विशेषज्ञों के अनुसार व्यायाम के दौरान तीन अलग-अलग बिंदुओं पर पानी पीना चाहिए।

व्यायाम के पहले

व्यायाम के दो-तीन घंटे पहले कम से कम आधा लीटर पानी पीना चाहिए।और व्यायाम शुरू करने के 20-30 मिनट पहले 250एमएल पानी पीना चाहिए।

व्यायाम के बीच में

जब आप व्यायाम कर रहे हो तो आपको व्यायाम की तीव्रता और कितना पसीना आ रहा है इस आधार पर, हर 15 से 20 मिनट में 250एम एल पानी पीना चाहिए।

व्यायाम के बाद

व्यायाम खत्म करने के बाद 30 मिनट के अंदर आपको 200 एमएल पानी पीना चाहिए।

जहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है की अगर आप 1 घंटे या उससे ज्यादा का व्यायाम करते हैं तो आपको साथ में सोडियम और पोटेशियम युक्त स्पोर्ट्स ड्रिंक जरूर रखना चाहिए। स्पोर्ट्स ड्रिंक का चुनाव करते समय एक बात जरूर ध्यान रखें कि उसमें चीनी (शुगर )की मात्रा कम से कम हो।

3.अपने मूत्र (urine)पर जरूर ध्यान दें।

आपका शरीर हाइड्रेटेड है या नहीं, आपका मूत्र इसको काफी सटीक तरीके से बता सकता है। मूत्र के द्वारा शरीर हानिकारक और अपशिष्ट पदार्थों से छुटकारा पाता है। अगर आप का मूत्र गहरा पीला या अंबर रंग का है तो इसका मतलब यह है कि इसमें कम पानी और अधिक अपशिष्ट है और यह एक मजबूत संकेत है की आप कम मात्रा में पानी का सेवन कर रहे हैं।

यदि आप स्वस्थ और हाइड्रेटेड है तो आप के मूत्र का रंग हल्का पीला होना चाहिए। यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि अगर आप अधिक पानी पीते हैं तो आपको बार-बार पेशाब जाने की जरूरत पड़ती है बार बार बाथरूम जाना कुछ असुविधाजनक हो सकता है पर धीरे-धीरे आपका शरीर तरल पदार्थों की मात्रा के हिसाब से इसको समायोजित कर लेगा और कुछ समय के बाद आपको बार बार बाथरूम जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

4.डिस्क हाइड्रेशन और ELDOA

क्योंकि हमारी डिस्क में कोई खून की सप्लाई नहीं होती है इसलिए वह पोषक तत्व और पानी के लिए इंबाइबशन(अंत:शोषण) के तरीके पर निर्भर रहती है। जब हम लेटते हैं या रात में सोते हैं, सही तरीके से चलते हैं तो हमारी डिस्क इंबाइबमिशन(अंत:शोषण) तरीके से अपने आप को रिहाइड्रेट कर लेती है अगर हम पर्याप्त पानी पीते हैं तो।

ELDOA व्यायाम के द्वारा हम डिस्क के इंबिबिशन तरीके से रिहाइड्रेशन को और अधिक बढ़ा सकते हैं।

ELDOA व्यायाम का एक फायदा यह भी है कि यह उन उतको(tissues) को भी मजबूती प्रदान करने में सहायक होते हैं,जो रीढ़ को लंबी अवस्था में बनाए रखते हैं। पर ELDOA व्यायाम के इन फायदे को लेने के लिए आपके शरीर में पर्याप्त मात्रा में पानी भी होना आवश्यक है।ELDOA व्यायाम के कई और फायदे भी हैं।यह रीढ़ के विशेष खंड को लंबा करके कैनाल डिकॉम्प्रेशन, डिस्क हीलिंग और डिस्क रिपोजिशनिंग भी कर सकता है जिससे हम स्लिप डिस्क की समस्या से पूरी तरह ठीक भी हो सकते है।ELDOA व्यायाम के लिए ये यूट्यूब वीडियो देखें।https://youtu.be/JX43wlUGhko

5.चिकित्सक ये सप्लीमेंट आपको दे सकते हैं।

ग्लूकोसामाइन और chondroitin कार्टिलेज के आवश्यक अवयव हैं। इनका कॉम्बिनेशन दिन में तीन बार 60 दिनों तक लेने से लाभ हो सकता है उसके बाद धीरे धीरे उसकी खुराक कम की जा सकती है। इसके अतिरिक्त कैल्शियम और ओमेगा 3 फैटी एसिड लेने से भी फायदा मिलता है।

अंतिम वाक्य

हाइड्रेटेड रहने के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह आपके रीढ़ की हड्डी के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने के अलावा और भी बहुत कुछ कर सकता है, हालांकि यह एक बहुत बड़ा लाभ है। इसके हृदय संबंधी लाभ भी हैं, आपके गुर्दे से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, आपकी मांसपेशियों को पोषक तत्व पहुंचाने में मदद करता है, आपके बालों को घना होने में मदद करता है, आपकी त्वचा को नरम महसूस कराता है और भी बहुत कुछ। अतः हाइड्रेटेड रहना सामान्य तौर पर भी आपके लिए विन-विन की परिस्थिति है।

यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि कॉफी और जूस जैसे पूरे दिन अन्य तरल पदार्थ पीने से वास्तव में आपको अपने जरूरत के दैनिक सेवन की मात्रा की ओर बढ़ने में मदद मिलती है। बेशक, अंतर यह है कि आप आम तौर पर उन पेय के साथ अन्य रसायनों, शर्करा, एसिड और अधिक ले रहे हैं, इसलिए उन्हें जिम्मेदारी से सेवन किया जाना चाहिए।इसके अलावा और भी तरीके और ट्रिक हैं हाइड्रेटेड रहने के। निश्चय आपको करना है कि कौन सा तरीका आपके लिए उपयुक्त है।आप ऑनलाइन ढूंढ सकते है,या मेरा ही एक अन्य ब्लॉग इस पर है,वह देख सकते हैं।

7 तरीके पानी ज्यादा पीने केhttps://hamarihealth.in/7-%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%87/?preview=true&preview_id=443&preview_nonce=fcc6e67868&frame-nonce=623ed3b1da&amp=1

कमर दर्द के वह लक्षण जिनके आने पर डॉक्टर को दिखाना जरूरी है/

सामान्यता लगभग हर व्यक्ति को अपने जीवन काल में कभी न कभी कमर का दर्द होता है। और बिना किसी इलाज या घरेलू इलाज से ठीक भी हो जाता है। परेशानी तब होती है जब चेतावनी वाले लक्षण प्रकट होते हैं लेकिन अनजाने में हम उसे नकार देते हैं या उपेक्षित कर देते हैं। तो यहां पर हम ऐसे ही कुछ लक्षणों के बारे में बात करेंगे जिनके दिखने पर आपको अपने विशेषज्ञ चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

1. अगर आप का दर्द कमर के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में जाने लगे।

अगर अगर दर्द कमर से जांघों में होते हुए नीचे पैर के पंजे तक जाने लगे या जांघों के बगल में और जांघों के आगे शूटिंग तेज दर्द हो या तेज झनझनाहट और करंट की तरह महसूस हो तो यह स्लिप डिस्क या सिया टीका के लक्षण हो सकते हैं। ऐसी स्थित में डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए।

2. पैरों में सुन्नपन या कमजोरी महसूस होने लगे

कमर दर्द के साथ-साथ आपको पैरों में सुन्नपन आ जाए या पैरों में कमजोरी महसूस होने लगे, पैर का पंजा या अंगूठा चलना बंद कर दें या सामान्य दर्द की दवा से दर्द में आराम ना हो तो यह गंभीर स्थिति हो सकती है ऐसी स्थिति में चिकित्सक से जरूर संपर्क करना चाहिए।

3. एक्सीडेंट या चोट के बाद कमर में दर्द हो।

अगर एक्सीडेंट या चोट लगने के बाद लगातार कमर में दर्द बना हुआ है या फिर बिस्तर से उठने ,झुकने या चलने पर कमर में दर्द होने लगता है तो इसमें फैक्चर हो सकता है इसलिए डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए क्योंकि इसके तत्काल निवारण की आवश्यकता होती है।

4. अगर आपका कमर दर्द किसी निश्चित मुद्रा या निश्चित समय में बढ़ जाता है।

उदाहरण के लिए अगर आप का दर्द रात में बढ़ जाता है और आपको नींद से जगा देता है या फिर लेटने पर दर्द बढ़ जाता है या जब कुछ वजन उठाते हैं तब दर्द बढ़ जाता है, तो यह कुछ गंभीर समस्या के भी लक्षण हो सकते हैं जैसे इंफेक्शन, फैक्चर ,कैंसर,नस का दबना इत्यादि। आपको अवश्य अपने चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

5. कमर दर्द के साथ-साथ आपको पेशाब पाखाने में भी समस्या होने लगे।

अगर कमर दर्द के साथ साथ आपको पेशाब पाखाने पर नियंत्रण ना रह जाए यानी पेशाब या पाखाना अपने आप होने लगे, तो या एक गंभीर समस्या कोडा इक्वैना सिंड्रोम की तरफ इशारा करते हैं, जो आपकी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में नसों की पैरालिसिस की वजह से हो सकता है ।इसमें तुरंत सर्जरी की भी आवश्यकता हो सकती है इसलिए बिना देर किए चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

6.बिना कारण वजन घट रहा हो।

अगर बिना डाइट और जीवन शैली बदले तेजी से वजन घटे तो यह खतरे की घंटी हो सकती है और अगर साथ में कमर दर्द भी है तो यह टीबी जैसे इन्फेक्शन या ट्यूमर ,कैंसर का भी संकेत हो सकता है। अगर बिना किसी कारण वजन कम हो तो डाक्टर से संपर्क करना चाहिए।

7. अगर कमर दर्द के साथ साथ लगातार बुखार बना रहे।

अगर बुखार सामान्य दवाओं से ना जा रहा हो और साथ में लगातार कमर दर्द के साथ बना हुआ हो तो अब कोई स्पाइन का इंफेक्शन हो सकता है इसलिए चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

सामान्यता है ऊपर दिए गए लक्षणों के अलावा अगर आपको तेज कमर दर्द 3 हफ्ते या उससे ज्यादा समय से बना हुआ है तो भी चिकित्सक से अवश्य संपर्क करके उसका समाधान करना चाहिए।

ब्लॉग आपको कैसा लगा कृपया लाइक और सब्सक्राइब करें और यह सुझाव भी दे कि आप किस टॉपिक पर ब्लाग चाहते हैं।

https://youtu.be/j1QWJqtYjP4

Stretching in sciatica

स्लिप डिस्क के concept को समझने के लिए ये यू ट्यूब वीडियो देखें

%d bloggers like this: